Tuesday, July 26, 2011

एक लड़की को याद करता हूँ



















शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ !
सारे काम उसकी तस्वीर
देखने के बाद करता हूँ !

लाइब्रेरी,स्टैंड,कैन्टीन,कैम्पस मे
जब वो दिख
थक जाऊँ सीढियाँ चढ़ते-उतरते मग
जब वो दिख
तो निराश होकर 
क्लास में पिछली बेंच पे बै
उसके आने की मुराद करता हूँ,
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ !!

क्लास में बैठक
फेल पास की माया से दू
मुहब्बत की जिम्मेदारी
निभाता हूँ
वो कहीं भी
उसे देखने के लि
अपनी आँखों को
हर सम्भव कोणों
घुमाता हूँ मै
और उसकी एक हँसी से अपनी 
सारी बर्बादियों को आबाद करता हूँ,
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ !!

फेसबुक से उसकी तस्वीर का एक पैकर लाता हू
अपनी मोबाइल में वही वालपेपर लगाता हू
और रात के अँधेरे में जब
पूरा मुहल्ला सोता
मकानों से पंखों की सरसराहट के सिव
और कोई खलबली नही होत
तो समां जलाकर उस लड़की
शायरी का ढंग इजाद करता हूँ,
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ !!

जब तस्वीर उसकी 
मेरे मोबाईल में पकड़ी गयी 
तो दीदी बोलीं 
"वाह,आँखें इसकी नीमबाज़ हैं रे"
मम्मी बोलीं
"का बहादुर,ऐसे कितने राज हैं रे "
भैय्या बोले
"उस लड़की के लिए
बोरी भर दी तूने बोतल से,
हम तुमसे नाराज़ हैं रे "
घर वालों की मर्ज़ी नामर्जी में 
बस उस पगली के लिए
खुद से झगड़े-फसाद करता हूँ
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ  !!

सोचता  हूँ  बात करूँ उससे 
मगर वो  इतराती बहुत है 
दिमाग से थोड़ा पैदल है 
पर ,दिल को भाती बहुत है 
जानबूझ के अनजान है वो 
मुझे दर्द देने की रस्मे 
वो निभाती  बहुत है 
मै भी हूँ कि मरता नही 
पुराने ग़मों को 
नए ग़मों से  आज़ाद  करता हूँ 
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ  !!

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