Sunday, August 6, 2017

मौत है करीब



मौत है करीब
कर क्या रहा हूँ 
 
जा रहा समय मेरा 
चूतिया ही बनते 
अगणित हैं शर्म बीज 
रोज तनके मरते 
थूकता हूँ खुद पर
मूत सा बहा हूँ
मौत है करीब
कर क्या रहा हूँ 

फिजूल स्वप्न लेकर 
बार बार सोना 
जवानी का बीज
हवस में बोना
कर्तव्य ये मिला जो
शान से सहा हूँ 
मौत है करीब
कर क्या रहा हूँ 

कल से करूँगा 
ये कथा है पुरानी 
बीत गया बचपन 
जा रही जवानी 
कुछ और झूठ खुद से 
कुछ जैसे कहा हूँ 
मौत है करीब
कर क्या रहा हूँ ..