Sunday, August 6, 2017

मौत है करीब



मौत है करीब
कर क्या रहा हूँ 
 
जा रहा समय मेरा 
चूतिया ही बनते 
अगणित हैं शर्म बीज 
रोज तनके मरते 
थूकता हूँ खुद पर
मूत सा बहा हूँ
मौत है करीब
कर क्या रहा हूँ 

फिजूल स्वप्न लेकर 
बार बार सोना 
जवानी का बीज
हवस में बोना
कर्तव्य ये मिला जो
शान से सहा हूँ 
मौत है करीब
कर क्या रहा हूँ 

कल से करूँगा 
ये कथा है पुरानी 
बीत गया बचपन 
जा रही जवानी 
कुछ और झूठ खुद से 
कुछ जैसे कहा हूँ 
मौत है करीब
कर क्या रहा हूँ ..

Wednesday, February 12, 2014

राम नहीं कह पाऊँगा


भू अग्नि गगन मुझमें
जल मुझमें पवन मुझमें
यद्यपि मैं पंचभूत 
जलता नहीं अग्नि सा क्यूँ 
बहता नहीं पवन सा क्यूँ 
समृद्ध नहीं गगन सा क्यूँ 
निरुत्तर है पुनः कौन 
ये पोथियाँ हैं  धर्म की 
इन्हें नहीं सह पाऊँगा 
मैं राम नहीं कह पाऊँगा

पंक्तियाँ हैं वेद की 
ब्राह्मणों के स्वेद की 
कहता है चार्वाक 
मैं नहीं कहता 
गलत है चार्वाक 
मान लें तथापि
अमानुष था मानुष जब
जीव जीव का कौर
अवतरित नहीं हुए
कहाँ था प्रजापति
शाश्वत हैं देव न
मन्त्रों में ग्रन्थ के
अतः नहीं बह पाऊँगा
मैं राम नहीं कह पाऊँगा…

Wednesday, January 30, 2013

खेल है सब..


खेल है सब, कायनात फूँक देता है 
कौन बेरहम है दिनों-रात फूँक देता है 

खुदा की मर्जी या रश्मे-इश्क में कोई 
ले हाथ  में समां  हाथ फूँक देता है 

रूह जल रही  है, और  इश्क है 
कि जिस्म भी  साथ फूँक देता है 

जो दर्द माजी का जा जा के लौटता है 
वही दर्द 'हातिफ' हयात फूँक देता है. 


यूँ ही बेवजह..


यूँ ही बेवजह नहीं  गया होगा 
इश्क से बढ़के कुछ रहा होगा 

मिलना ही मुकामे-इश्क नहीं 
कैसे  कह दें, वो बेवफा होगा  

सुबूत  होगा  मेरे  इश्क का 
पलकों से गर कुछ गिरा होगा 

गुरूर  होगा  किसी बात का 
तो जानता हूँ मै वो खफा होगा 

नहीं जानता बेबसी का राज 
तो मेरे नाम पर ही हँसा होगा 

छोड़ दूं उसको तो उसको नहीं 
इश्क  को  मेरा  दगा  होगा .


Saturday, April 7, 2012

पढ़ लूँ...

 
जीवन का  मंतर है पढ़ लूँ
इश्क एक  खंजर है पढ़ लूँ
 
ग़ज़लों को जो दर्द चाहिए
वो  अपने  अंदर है पढ़ लूँ
 
उग न सका वफ़ा का पौधा
दिल उसका बंज़र है पढ़ लूँ
 
भीतर - भीतर  खारापन ये
दर्द - ए - समंदर  है पढ़ लूँ
 
हर  डाल मज़ा लेते  हैं गर
वफ़ा  एक  बंदर  है पढ़ लूँ
 
गुलशन कल सब मिट जायेंगे
खाक  सदा  सुंदर है  पढ़ लूँ.
 
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Monday, March 19, 2012

जमी पर आसमानी हो गया....





इस आसमानी चन्द्रमा के जाल में
मै  जमी  पर आसमानी हों  गया !
पुष्प  पंखुड़ी   सा  कोमल  कभी,
तो कभी  तीर कमानी  हो  गया !

लहू  के बादलों  का  फौज कभी
मोहिनी गीतों का मै मौज कभी
तो कभी पलकों का पानी हो गया,
इस आसमानी चन्द्रमा के जाल में
मै जमी पर आसमानी हो गया !

जिस याद का पुस्तक लिया
जिस प्रेम को  मस्तक दिया
प्रतिबिम्ब ही वह गुमानी हो गया,
इस आसमानी चन्द्रमा के जाल में
मै जमी पर आसमानी हो गया !

जीवन भ्रमर भ्रम बाँचती और
राह तवायफ-सी नाचती और
लक्ष्य पतझड़ की कहानी हो गया,
इस आसमानी चन्द्रमा के जाल में
मै जमी पर आसमानी हो गया !
 
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Saturday, March 17, 2012

तुम





आस तुम्हीं विश्वास तुम्हीं
मम हृदय की  खास तुम्हीं
सच्छास्त्रों  की  पात्र तुम्हीं 
दिवा  तुम्हीं  हो रात्र तुम्हीं 
तुम अनन्त  व्याकुलता हो
तुम प्रणय की सत पता हो
जीत तुम्हीं  हो  हार तुम्हीं
गीता  का  हो  सार तुम्हीं !

मम   दान  आदान  तुम्हीं
भूख तुम्हीं  मधुपान तुम्हीं
मम  हृदय  अनन्य  तुम्हीं
कृति  भू  पर  धन्य तुम्हीं
यौवन   की   परिभाषा तुम
याचक  की अभिलाषा तुम
भू  पर   हो  श्रृंगार  तुम्हीं
गीता  का  हो सार तुम्हीं !

शोध   तुम्हीं   प्रबोध  तुम्हीं
प्राणों   का   अनुरोध  तुम्हीं
मान तुम्हीं अभिमान  तुम्हीं
शब्द  तुम्हीं  हो   तान तुम्हीं
संगीत तुम्हीं मम जीवन की
ठहराव  तुम्हीं   मेरे मन की
मध्य  तुम्हीं  हो  पार तुम्हीं
गीता  का   हो   सार तुम्हीं !

मम  जीवन अनुयान  तुम्हीं
विजय  तुम्हीं हो शान तुम्हीं
दशा  तुम्हीं   अवदशा तुम्हीं
होश  तुम्हीं हो  नशा  तुम्हीं
सहर  उठा अजान  हो  तुम
निरवधि दुर्लभ ज्ञान हो तुम
मम    स्वप्न  बाज़ार तुम्हीं
गीता  का   हो  सार तुम्हीं !



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