Wednesday, January 30, 2013

खेल है सब..


खेल है सब, कायनात फूँक देता है 
कौन बेरहम है दिनों-रात फूँक देता है 

खुदा की मर्जी या रश्मे-इश्क में कोई 
ले हाथ  में समां  हाथ फूँक देता है 

रूह जल रही  है, और  इश्क है 
कि जिस्म भी  साथ फूँक देता है 

जो दर्द माजी का जा जा के लौटता है 
वही दर्द 'हातिफ' हयात फूँक देता है. 


यूँ ही बेवजह..


यूँ ही बेवजह नहीं  गया होगा 
इश्क से बढ़के कुछ रहा होगा 

मिलना ही मुकामे-इश्क नहीं 
कैसे  कह दें, वो बेवफा होगा  

सुबूत  होगा  मेरे  इश्क का 
पलकों से गर कुछ गिरा होगा 

गुरूर  होगा  किसी बात का 
तो जानता हूँ मै वो खफा होगा 

नहीं जानता बेबसी का राज 
तो मेरे नाम पर ही हँसा होगा 

छोड़ दूं उसको तो उसको नहीं 
इश्क  को  मेरा  दगा  होगा .