Wednesday, March 17, 2010

शायरी

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तेरा पता मालूम नहीं है,तू सपनो में आ जाना
मै तुझको अब कैसे भूलूँ ,ये मुझको बतला जाना
ख्वाब तो ये पागल मन को भी है मंजूर मगर ,
किसके घर में पानी ढूंढूं ,किसके घर में कोरापन
तेरे कारन खुद को ढूंढूं ,ये मेरा दीवानापन .
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दुआ है कि बरक़रार ये उमर रखिये
बेखबर होकर भी उनकी खबर रखिये
आसमां कि उंचाईयों को सोचो जुरूर
पर अपना पाँव जमी पर रखिये,
इतना न देखो उनको कि बुरा मान जाएँ,
तब तक अपनी नजरों पर भी नजर रखिये.
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कभी उनसे नजरें मिला के कहा
कभी उनसे नजरें छिपा के कहा
फिर भी जो कहना था कह न सका
हर वक़्त मै बातें बना के कहा,
दो पल गुजारा जो साथ उनके
उसे ही जिन्दगी बना के चला
हुआ बीमार मै गर कभी
उनकी याद को दवा बना के चला
उमड़े हुए बदल तो दिल के
हवाओं में अब टूट गए
पानी न था तो आंसूं के बूंदों से
पौधा अपना उगा के चला.


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उनकी याद आये तो दिल क्या करे
याद दिल से न जाये तो दिल क्या करे
सोचा था सपनो में मुलाकात होगी मगर
नींद ही न आये तो दिल क्या करे
थोडा उनसे भी रंग -अबीर हो जाये
मैं उनका आइना वो मेरी तस्वीर हो जाये
बंद पलकों में रख सकूं हमेशा उन्हें
काश ऐसी मेरी तकदीर हो जाये .
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बेवफा से खुद को वफ़ा कर ले तू
यहाँ की तालीमों से खुद को खफा कर ले तू
इस उम्र में तुझे बूढा बना देंगी ये
इस बुढ़ापे से खुद को जवां कर ले तू .
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सुर्खियाँ होठों की बदल जाती हैं
जब लडकियां हाथों हाथ निकल जाती हैं
मिली तो ठीक न मिली तो और भी ठीक
ये हमारे पैसे जो निगल जाती हैं .
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दोस्तों के पास मेरे लिए वक़्त न रहा
मेरे पास दोस्तों के लिए वक़्त न रहा
सब लगे हैं अपने यार के पीछे दौड़ने में अभी
क्यूंकि ये जवानी है बचपना का वक़्त न रहा .
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दोष तेरा नहीं तेरी उमर का है
इन लडकियों की पतली कमर का है
जो दिखाती हैं अदाएं तुझे नशीली 
दोष इन अदाओं की कहर का है .
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बे हया बातों में यूँ वक़्त बिताना आए दिन
उनकी यादों में रात भर खुद को जगाना आए दिन
गाँव में माँ मेरी पड़ी है बीमार ऐसे ही
फिर भी सच के परदे को यूँ आँख से हटाना आए दिन.
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किसी की याद में यूँ जलने से मिलना क्या,
सूखी दरया की गहराई से यूँ डरना क्या,
उमड़ते बादल तो दिल के हैं पानी बिन
खली प्याले को पीकर यूँ जीना क्या.
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कॉलेज कि लडकियां दिलों में बसती हैं
खुद पढ़े वो पर हमारी पढाई डसती हैं
इन्तजार में हूँ शायद कोई मिल जाये
पता नहीं क्यूँ उनसे निगाहे ही नहीं हटती हैं .
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मालियत बढ गयी है चीजों की अब
फिर भी शराब अच्छी लगने लगी
चाय पीने को कभी पैसे नहीं होते थे
पर उन्ही पैसों से ये बोतलें मिलने लगी.
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गम में हँसता हूँ तो लोग कहते हैं रोना नहीं आता
किसी की यादों में जगता रहूँ तो कहते हैं सोना नहीं आता
जिसके लिए करूँ वही दगाबाज कह जाता है
खैर कोई बात नहीं प्यार सबको निभाना नहीं आता.
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हम अपने मकाँ में अब ताला लगाने वाले हैं
खबर मिली है कि कुछ मेहमाँ आने वाले हैं
कंगाली में हूँ ,सिर्फ दो सौ बचे हैं
वे आकर इसे भी उड़ाने वाले हैं.
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मेरा जमीर तो बेईमा हो जाता है
जब कोई सामने से गुजर जाता है
अरे बेईमा तो इसी उमर में होंगे न
कुछ उमर बाद तो बुढ़ापा आ जाता है.
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न थी ये हमारी किस्मत कि किसी से प्यार होता
दिल कि सूनी गलियों में किसी का दीदार होता
हर बार कि कोशिश में नाकाम ही हुआ
काश!मेरे लिए भी सही किसी का अवतार होता.

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6 comments:

  1. अस्सलाम अलैकुम,
    आपने बहुत ही ख़ूबसूरती से अपनी बात रखने की कोशिश की है.
    अल्लाह का करम है कि अब ब्लॉग की दुनिया में कौम के लोगों की भागीदारी बढ़ रही है.ख़ुशी हुई.कभी मौक़ा मिले तो दीन और दुनिया की तरफ भी आयें.
    वस्सलाम

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  3. दुआ है कि बरक़रार ये उमर रखिये
    बेखबर होकर भी उनकी खबर रखिये
    आसमां कि उंचाईयों को सोचो जुरूर
    पर अपना पाँव जमी पर रखिये,
    इतना न देखो उनको कि बुरा मान जाएँ,
    तब तक अपनी नजरों पर भी नजर रखिये.
    Bahut sundar!

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  4. दुआ है कि बरक़रार ये उमर रखिये
    बेखबर होकर भी उनकी खबर रखिये
    आसमां कि उंचाईयों को सोचो जुरूर
    पर अपना पाँव जमी पर रखिये,
    इतना न देखो उनको कि बुरा मान जाएँ,
    तब तक अपनी नजरों पर भी नजर रखिये.
    kya baat hai!

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