Sunday, November 20, 2011

न मानूँ तो क्या ?


तन सीमाओं में रोये
मन अनन्त मदमस्त,
माया अधरों की जाम
पाप पुण्य में व्यस्त,
सत-मन चाप यदि, न तानूँ तो क्या ?
क्यूँ किसको मानूँ , न मानूँ तो क्या ?

नयन ज्ञान स्तम्भ
और दृष्टि परे की बात
बिन नीव के अजान
किस स्रष्टा के साथ
वेद-कुरआन खिचड़ी,न जानूँ तो क्या ?
क्यूँ किसको मानूँ , न मानूँ तो क्या ?

रूखा सूखा तन काटे
उपवन मन हत्यारा
सत्य निकट विलम्बित
झूठ दूर का प्यारा
नभ ,नक्षत्र, मही, न छानूँ तो क्या ?
क्यूँ किसको मानूँ , न मानूँ तो क्या ?

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Wednesday, September 14, 2011

दिल हैक हो गया (Dil Hack Ho Gaya)..!!


















दिल हैक हो गया,
दिल हैक हो गया यारो,दिल हैक हो गया !

वो  मेरे    मन  मुताबिक है, 
वो  मेरे  दिल  पे ट्रैफिक है,
जिस पर मेरे दिन रात चलें
वो घड़ी की ऐसी टिकटिक है, 
सोचा न समझा उसको बस 
जाल में उसके पैक हो गया, 
दिल हैक हो गया,
दिल हैक हो गया यारो,दिल हैक हो गया !

होंठ  उसके  देशी  लस्सी 
कमर खेले रस्सा-कस्सी 
जुल्फें टिम-टिम करती यूँ
मानो जैसे हो कोई गैलेक्सी 
इक्वेसन उसकी बड़ी भयंकर
मै दिमाग से लैक हो गया  
दिल हैक हो गया,
दिल हैक हो गया यारो,दिल हैक हो गया !
 
वो  गोली है ,धमाका है
मेरे  दिल की पटाका है
चलती है इक पाथ पे पर
पैरलल उसका इलाका है
अपनी धुन में वो टाप कर गयी
और मै सबसे बैक हो गया 
दिल हैक हो गया,
दिल हैक हो गया यारो,दिल हैक हो गया !!


Tuesday, July 26, 2011

एक लड़की को याद करता हूँ



















शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ !
सारे काम उसकी तस्वीर
देखने के बाद करता हूँ !

लाइब्रेरी,स्टैंड,कैन्टीन,कैम्पस मे
जब वो दिख
थक जाऊँ सीढियाँ चढ़ते-उतरते मग
जब वो दिख
तो निराश होकर 
क्लास में पिछली बेंच पे बै
उसके आने की मुराद करता हूँ,
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ !!

क्लास में बैठक
फेल पास की माया से दू
मुहब्बत की जिम्मेदारी
निभाता हूँ
वो कहीं भी
उसे देखने के लि
अपनी आँखों को
हर सम्भव कोणों
घुमाता हूँ मै
और उसकी एक हँसी से अपनी 
सारी बर्बादियों को आबाद करता हूँ,
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ !!

फेसबुक से उसकी तस्वीर का एक पैकर लाता हू
अपनी मोबाइल में वही वालपेपर लगाता हू
और रात के अँधेरे में जब
पूरा मुहल्ला सोता
मकानों से पंखों की सरसराहट के सिव
और कोई खलबली नही होत
तो समां जलाकर उस लड़की
शायरी का ढंग इजाद करता हूँ,
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ !!

जब तस्वीर उसकी 
मेरे मोबाईल में पकड़ी गयी 
तो दीदी बोलीं 
"वाह,आँखें इसकी नीमबाज़ हैं रे"
मम्मी बोलीं
"का बहादुर,ऐसे कितने राज हैं रे "
भैय्या बोले
"उस लड़की के लिए
बोरी भर दी तूने बोतल से,
हम तुमसे नाराज़ हैं रे "
घर वालों की मर्ज़ी नामर्जी में 
बस उस पगली के लिए
खुद से झगड़े-फसाद करता हूँ
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ  !!

सोचता  हूँ  बात करूँ उससे 
मगर वो  इतराती बहुत है 
दिमाग से थोड़ा पैदल है 
पर ,दिल को भाती बहुत है 
जानबूझ के अनजान है वो 
मुझे दर्द देने की रस्मे 
वो निभाती  बहुत है 
मै भी हूँ कि मरता नही 
पुराने ग़मों को 
नए ग़मों से  आज़ाद  करता हूँ 
शहर के किसी कालेज की
एक लड़की को याद करता हूँ  !!

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Sunday, July 24, 2011

सच की कुटी


















वर्तमान की अधर को छू
आगामी दृश्य पल पल का
भूत हो रहा,
नजर और ठिकाने पे टिके
ये तीनो काल
बहुत समीप और दूर  भी ,


मेरे  स्वप्नों  के  समान
मै  कैसा  स्वप्नांश
इस सच के लिए  
मै सदियाँ  टटोलूं
सफ़र पर जाऊँ भविष्य के
प्रकाश वेग से तेज

या अपने  अन्तः गुलशन
की सैर करूँ,

सच मेरे अन्तः को छोड़ यदि
जगत के दूजे कोने में बसता
और ईश्वर ईमानदार होता
तो  जरूर 

मुझे पंख मिले होते
वहाँ जाने के लिए !!



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Tuesday, July 19, 2011

मोहे तू सुला दे मैया




















अंचला ओढ़ा दे मैया,मोहे तू सुला दे मैया !
कारी कारी रतिया मैया
भूत जैसे लागे
खेतवा बिगऊआ बोले
बहुत डर लागे मैया 
मोहे तू सुला दे मैया,मोहे तू सुला दे !
अपने बगियवा मैया
चुरैलिया उतरे
झलिया के इ बँसवा
सांप जैसे लहरे मैया
मोहे तू सुला दे मैया,मोहे तू सुला दे !
भईया दुआरे मैया
आज हम्मै मारिन
लल्ला इ लाल तोहर
उन्हैं इ बता दे मैया
मोहे तू सुला दे मैया, मोहे तू सुला दे !


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Wednesday, June 29, 2011

जबसे ये प्यार था...!!

 



















जबसे  ये प्यार था ,मै लाचार था
दवा   भी  थी  और बीमार था !

वो दिल की दीवारों के उस पार थी
उसे  ढूँढता  मै  इस पार था !

गमो का हर जाम चूमता था यूँ
जैसे सच  में उसका रुखसार था !

वो गैर की है, ये जानता था मगर
न जाने क्यूँ उसी का इन्तजार था !

वो काँटो की डगर,आंधी या तूफाँ
पाने को  उसे  मै  तैयार  था !

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Tuesday, June 14, 2011

और दगा किया हमने !!






जाने कितने फितने थे उमंगों से जन्मे
कि अपने यार पे लुटायेगी वो,
अपने कस्बे से
इस आस में
चली थी वो ट्रेन से
रुकी थी कुछ घन्टे
हमारे पास लखनऊ में
इस भरोसे पे
कि हम उसे हमारे दोस्त
और उसके अजीज के पास
बम्बई जाने वाली
किसी दूजी ट्रेन में बिठाएंगे ,
तीन बजे होंगे भोर के
जब वो निकली थी घर से अकेले
घरवालों के
इज्जत की गठरी लेकर,
वो खुश थी काफी
यहाँ हमारे पास
जैसे हम उसे उसके मन की जागीर
दिला ही देंगे ,
रात में हम उसे लेकर निकले
कि ट्रेन का वक्त हो गया है
यह कहकर,
कुछ दूर चले थे कमरे से
एक छोटे से चौराहे की
एक राह पर
किनारे खड़ी कार से आगे
रोक के  उसे
उससे कुछ खाने को पूछा
कि अचानक
उस कार से निकलकर
कोई आया चुपके से
और लड़की को कार में बिठाने की
नाकाम कोशिश करने लगा,
फिर हमने खुद जाकर
कार में उसे जबरन बिठाया ,
वो आदमी,वो अजनबी
जिसे हमने पहली बार देखा था
उस बेचारी का भाई था
जिसे फोन करके
बुलाया था हमने ही,
न करते हम ऐसा
अगर
उसकी नजर में
उसके दिल को ताज पहनाने वाला
उसका प्रेमी
हमारी नजर में निकम्मा न होता
जो पिछले कुछ सालों से
सारे दोस्तों से
अपने निकम्मेपन का
लोहा मनवा चुका था,
फिर भी उस लड़की
जिसे हमने एक चाल के तहत
उसके घरवालों को सुपुर्द किया
और जो अपने निकम्मे प्रेमी को
शहँशाह समझ भ्रमित है
के मन में यही बात है कि
भरोसा किया उसने हमपे
और दगा किया हमने !!
 

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Wednesday, June 8, 2011

जुल्फों की चोटी में फँस गया..


















जुल्फों की चोटी में  फँस गया , चोटी पे जाऊँगा कैसे ?
बिन  खेवईया नाव  पे बैठा , नैया पार लगाऊँगा कैसे ?
 
दो  महलों   का  चहल - पहल
इक मौजमहल इक रंजमहल
इस छोटी सी उम्र में  महलो-महल सुलझाऊँगा कैसे ?
जुल्फों की चोटी में  फँस गया.............................?
 
इक मुक्तक उस पार की
सौ  पुस्तक  मझधार की
फिर भी अन्तर है बहुत, मझधारी को जिताऊँगा कैसे ?
जुल्फों की चोटी में फँस गया................................?
 
यौवित अधरों की मस्ती
गहरी   साँसों  की सुस्ती
आगे  भी हैं  ऐसे कुएँ पर , खुद  को समझाऊँगा कैसे ?
जुल्फों की चोटी में फँस गया..............................!!

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Wednesday, May 18, 2011

जली बस्ती,मिटी हस्ती तेरे पीछे


तेरी आँखों में ...







तेरी  आँखों   में  हया  की  नमी  हो  जाए
तो  शायद  मुझे  तुमपे  यकीं  हो  जाए !!
 
बेकरारी  भले  हो  पर  आऊँगा  तभी  जब
तेरी जुल्फों में जुओं  की कमी  हो  जाए !!
 
बादल    की    अमानत    जमी    से  ही   है
क्या करे बादल जब बेवफा जमी हो जाए !!
 
बेशक   क़त्ल  करो   मेरा  पर डरता  हूँ कि
साँसे तेरी हैं, कत्ल न इनका कहीं हो जाए !!


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Thursday, April 28, 2011

जाने क्या सोचा था...




जाने     क्या   सोचा   था ,   'क्या  मुकाम   देखेंगे'
हज़ार
    काम   हों  पर   तेरा  इन्तजाम  देखेंगे !!

बुझ
     गयी    वो   लौ ,   लौ  तुमने   फूँक   दी
जिन्दगी
  क्या  , अब   कफ़न  में  कयाम    देखेंगे !!

  
तेरी     जिद   पे   किनारे   खड़े खड़े   ही  रहे
अब
   आंसुओं   में    शरीक   हर  शाम  देखेंगे !! 

 
हँसी    ख़ुशी   इक    लहजा  ,   लहजे   का  क्या
जाम
-- ख़ुशी  में तुम ,हम जहर का जाम देखेंगे !! 

 
गवाँ    दिया   सब   तेरे   पीछे   बे -इन्तहां  होकर
बदले
   में     मिला जख्म   का    इनाम    देखेंगे !! 

 
ये    और    बात   है हमें     वफ़ा      मिली
हर
     जर्रे  में  मगर तेरा    ही   नाम   देखेंगे !! 

 
दौलत   पूछो   गीत  गजल  के  सिवा  कुछ नही
 इश्क  बाजारी  में 'हातिफ' ,इस  गजल का दाम
देखेंगे !!
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                                                         -  RITIK HATIF

Monday, April 25, 2011

काश मेरी हो तेरी ये मूरत





तुमको ही जाने,तुम्हे पहचाने
मेरा    वुजूद   को   जाना है ?
तेरी   ही   गलियाँ, तेरे दीवाने
तेरी   वजह   से   मैखाना  है !

तेरे   हुस्न   पे   दुनिया  नाचै,
जिसको  देखो  गुन तेरा बाचै,
हम तो भी अब लिखने लगे हैं
गान  भी  तेरा  करने  लगे हैं !

तेरे फिकर में  हम हुए आधा,
इस   श्याम   की  तू है  राधा,
तू  चन्दा  हम   सितार  हुए हैं
तेरी  यादों के बाज़ार  हुए हैं ! 

उफ़   ये  तेरी आँखें  समंदर ,
होता  नहीं  पर डूबने का डर,
डूब   गया  तो  मेरी किस्मत
काश  मेरी हो तेरी ये मूरत !!

 
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                                             -RITIK 'HATIF'

Tuesday, April 19, 2011

B Tech के चार साल





हर    आँसू    हर   हाल  , तेरे पीछे
B Tech  के चार साल , तेरे पीछे !!

पढ़ने       के     दौर      का     क्या
टीचर्स  से हुआ बवाल  ,तेरे पीछे !!

लैब      प्रोग्राम्स        की      तरह
बनते    हैं  सवाल   ,   तेरे  पीछे !!

न्यूटन है मिसाल तो क्या मै कम हूँ
निकम्मों  में  मै  मिसाल तेरे पीछे !!



कहाँ      कहाँ      न       गया      मै
स्टैंड , सेमिनार  हाल    तेरे पीछे !!

एन्स्वर   शीट  पे    तेरा  चेहरा और
कलम से निकले गुलाल,तेरे पीछे !!

आज     नही    तो     कल     फँसोगे
बना    हूँ  इक  जाल    तेरे    पीछे !!


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                                                     -रितिक 'हातिफ'

Friday, April 15, 2011

भारत की सर जमी.................!!









कुराँ  की  जुबाँ,  वेदों  की जतन बनी रहे !
भारत की सर जमी ,बनी दुल्हन बनी रहे !!

  क्रोध  बला  पे  खींचा   हो
   
कोई  ऊंचा कोई  नीचा हो 

मन  में  तरंगी   उमंग  रहे
 
और   हिन्द पताका ऊंचा हो
दौलत आनी जानी है, बस मन की कंचन बनी रहे !
भारत  की   सर   जमी ,  बनी दुल्हन  बनी रहे !!


इस पार गयीं, उस पार गयीं
जाने किस किस पार गयीं
आवाज़  उठी  जो  आँगन से
माटी  के  लिए  सौ  बार गयीं
घर  की   तुलशी  , माटी   में  चन्दन  बनी रहे  !
भारत  की  सर  जमी ,बनी  दुल्हन बनी रहे !!

रूठा कोई अपना छूट जाय
छूटा कोई अपना रूठ जाय
सुनी   सुनाई  बातों  से   बस
प्रेम  की  रेशम  टूट  जाय
मत  जुदा  हों पर, दिल की  मिलन  बनी रहे !
भारत  की  सर जमी , बनी  दुल्हन  बनी  रहे
!!

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                                                         -रितिक 'हातिफ'