Wednesday, June 29, 2011

जबसे ये प्यार था...!!

 



















जबसे  ये प्यार था ,मै लाचार था
दवा   भी  थी  और बीमार था !

वो दिल की दीवारों के उस पार थी
उसे  ढूँढता  मै  इस पार था !

गमो का हर जाम चूमता था यूँ
जैसे सच  में उसका रुखसार था !

वो गैर की है, ये जानता था मगर
न जाने क्यूँ उसी का इन्तजार था !

वो काँटो की डगर,आंधी या तूफाँ
पाने को  उसे  मै  तैयार  था !

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Tuesday, June 14, 2011

और दगा किया हमने !!






जाने कितने फितने थे उमंगों से जन्मे
कि अपने यार पे लुटायेगी वो,
अपने कस्बे से
इस आस में
चली थी वो ट्रेन से
रुकी थी कुछ घन्टे
हमारे पास लखनऊ में
इस भरोसे पे
कि हम उसे हमारे दोस्त
और उसके अजीज के पास
बम्बई जाने वाली
किसी दूजी ट्रेन में बिठाएंगे ,
तीन बजे होंगे भोर के
जब वो निकली थी घर से अकेले
घरवालों के
इज्जत की गठरी लेकर,
वो खुश थी काफी
यहाँ हमारे पास
जैसे हम उसे उसके मन की जागीर
दिला ही देंगे ,
रात में हम उसे लेकर निकले
कि ट्रेन का वक्त हो गया है
यह कहकर,
कुछ दूर चले थे कमरे से
एक छोटे से चौराहे की
एक राह पर
किनारे खड़ी कार से आगे
रोक के  उसे
उससे कुछ खाने को पूछा
कि अचानक
उस कार से निकलकर
कोई आया चुपके से
और लड़की को कार में बिठाने की
नाकाम कोशिश करने लगा,
फिर हमने खुद जाकर
कार में उसे जबरन बिठाया ,
वो आदमी,वो अजनबी
जिसे हमने पहली बार देखा था
उस बेचारी का भाई था
जिसे फोन करके
बुलाया था हमने ही,
न करते हम ऐसा
अगर
उसकी नजर में
उसके दिल को ताज पहनाने वाला
उसका प्रेमी
हमारी नजर में निकम्मा न होता
जो पिछले कुछ सालों से
सारे दोस्तों से
अपने निकम्मेपन का
लोहा मनवा चुका था,
फिर भी उस लड़की
जिसे हमने एक चाल के तहत
उसके घरवालों को सुपुर्द किया
और जो अपने निकम्मे प्रेमी को
शहँशाह समझ भ्रमित है
के मन में यही बात है कि
भरोसा किया उसने हमपे
और दगा किया हमने !!
 

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Wednesday, June 8, 2011

जुल्फों की चोटी में फँस गया..


















जुल्फों की चोटी में  फँस गया , चोटी पे जाऊँगा कैसे ?
बिन  खेवईया नाव  पे बैठा , नैया पार लगाऊँगा कैसे ?
 
दो  महलों   का  चहल - पहल
इक मौजमहल इक रंजमहल
इस छोटी सी उम्र में  महलो-महल सुलझाऊँगा कैसे ?
जुल्फों की चोटी में  फँस गया.............................?
 
इक मुक्तक उस पार की
सौ  पुस्तक  मझधार की
फिर भी अन्तर है बहुत, मझधारी को जिताऊँगा कैसे ?
जुल्फों की चोटी में फँस गया................................?
 
यौवित अधरों की मस्ती
गहरी   साँसों  की सुस्ती
आगे  भी हैं  ऐसे कुएँ पर , खुद  को समझाऊँगा कैसे ?
जुल्फों की चोटी में फँस गया..............................!!

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