Wednesday, March 17, 2010

मै एक इश्कबाज़ बुड्ढा

मेरी उम्र काफी ढल चुकी है .इस उमर में इश्कबाजी ठीक तो नहीं है ,
लेकिन ये बात दिल समझता ही नहीं.खैर मेरे दिल की
आवाज कुछ ऐसे बन के रह गयी है-
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हुकूमत तो खूब किया तूने मेरे दिल पर
जो मुकम्मल जवानी बर्बाद करके चली गयी !

तेरी फिकर में इतना क्यूँ रहा,घरवाली भी ठीक थी
पर तेरे कारन वो भी छोड़ कर चली गयी !

सुकूँ में हूँ आजकल,मक्खियाँ मारता फिरता हूँ
याद ही बस बची है नीद भी चली गयी !

अब इस बुढ़ापे में कहाँ इश्क लड़ाऊँ 'हातिफ'
बहू को देखता था पर वो भी मायके चली गयी !!

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