Wednesday, February 12, 2014

राम नहीं कह पाऊँगा


भू अग्नि गगन मुझमें
जल मुझमें पवन मुझमें
यद्यपि मैं पंचभूत 
जलता नहीं अग्नि सा क्यूँ 
बहता नहीं पवन सा क्यूँ 
समृद्ध नहीं गगन सा क्यूँ 
निरुत्तर है पुनः कौन 
ये पोथियाँ हैं  धर्म की 
इन्हें नहीं सह पाऊँगा 
मैं राम नहीं कह पाऊँगा

पंक्तियाँ हैं वेद की 
ब्राह्मणों के स्वेद की 
कहता है चार्वाक 
मैं नहीं कहता 
गलत है चार्वाक 
मान लें तथापि
अमानुष था मानुष जब
जीव जीव का कौर
अवतरित नहीं हुए
कहाँ था प्रजापति
शाश्वत हैं देव न
मन्त्रों में ग्रन्थ के
अतः नहीं बह पाऊँगा
मैं राम नहीं कह पाऊँगा…

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