Monday, March 5, 2012

लक्ष्य अपरछ्न दूर कहीं हो

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लक्ष्य अपरछ्न दूर कहीं हो
देखो सही ,नूर कहीं हो
इकरार बेकार होगा अगर
नशे में तुम, चूर कहीं हो
धीरे धीरे खोलो कपाट,खोलो मगर दिल से खोलो I
पाओ कुछ पाओ ,फिर बोलो II

वेद,बाइबिल हो या कुरआन
न मानो यूँ ,किसी की जुबान
लो और फिर महसूस करो
फिर करना तुम विचार प्रदान
मरने से पहले इक बार,तुम खुद का राज टटोलो I
पाओ कुछ पाओ ,फिर बोलो II

द्विष को घाटा खुद से होता
प्रयुत्सु कहीं ध्यान न खोता
क्या माया है, क्या छाया
न जाने जो हरदम सोता
द्वेष भरी दुनिया में तुम,अपने प्रेम की दवा घोलो I
पाओ कुछ पाओ ,फिर बोलो II
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