भू अग्नि गगन मुझमें
जल मुझमें पवन मुझमें
यद्यपि मैं पंचभूत
जलता नहीं अग्नि सा क्यूँ
बहता नहीं पवन सा क्यूँ
समृद्ध नहीं गगन सा क्यूँ
निरुत्तर है पुनः कौन
ये पोथियाँ हैं धर्म की
इन्हें नहीं सह पाऊँगा
मैं राम नहीं कह पाऊँगा
पंक्तियाँ हैं वेद की
ब्राह्मणों के स्वेद की
कहता है चार्वाक
मैं नहीं कहता
गलत है चार्वाक
मान लें तथापि
अमानुष था मानुष जब
जीव जीव का कौर
अवतरित नहीं हुए
कहाँ था प्रजापति
शाश्वत हैं देव न
मन्त्रों में ग्रन्थ के
अतः नहीं बह पाऊँगा
मैं राम नहीं कह पाऊँगा…