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कोई चन्द खिलौने ले आया है
कोई खेल उसे झुठलाया है
कुछ की अधरों पे नसीबी है
कुछ ने आंसू ही बहाया है
कोई हरदम गम की शोर मचाये
कोई गम को ही मुस्कान बनाये
कुछ पिचकारी की फुहार बनाते
कुछ दरया में ही जा नहाये
कोई मकाँ की मंजिलें बढ़ाये
कोई कर्म से झोपड़ी ही पाये
कुछ औरों में ही उलझते रहे
कुछ खुद में ही गोते लगाये
कोई क्रोध करे लाचारी से
कोई झूठ कहे सुतारी से
कुछ ने मुहब्बत घर लाया
कुछ मरे प्यार की बीमारी से.
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Friday, April 30, 2010
Saturday, April 3, 2010
मै और कायनात

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अपनी कुदरत के साथ
ये पृथ्वी
माफताब को लिए हुए
कुछ और आकाशीय पिंडों के साथ
आफताब को घेरने की
कोशिश करती है,
इस तरह के कई समूह
जो अन्तरिक्ष में हैं
मिलकर गैलेक्सी बना देते हैं
और गैलेक्सियां मिलकर
कायनात की भौतिक संरचना
बयां करती हैं,
कायनात की भौतिकता
विशाल होते हुए भी
इंसानी विचारों में
सिमट जाती है,
मगर,सच
अर्थात
'सम्पूर्ण में निहित
सम्पूर्ण के अस्तित्व का ज्ञान'
हमसे अलहदा ही रहता है,
इसी अज्ञानता में
मै इस कायनात को
माँ कहता हूँ
तो अच्छा लगता है
क्यूंकि
इसी की गोद में
ये दुनिया पलती है.
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