Monday, May 24, 2010

सलाम करता हूँ

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सूरज को चन्दा से मुहब्बत है अगर
बादल को धरती से मुहब्बत है अगर
तो
सलाम करता हूँ
इन मुहब्बत वालों को
जो मिलते नहीं कभी
मगर
आईने हैं इक दूजे के
सदियों से

जिसे कभी कोई पीर न मिला
जिसे कोई रहनुमा न मिला
वो
पा जाय गर सच को
ऐसे
किसी बुद्ध जैसे को
सलाम करता हूँ मै
जिसकी चमक है
सदियों से.

जिसने दुश्मन को भी अपना समझा
पराये गम को अपना गम समझा
जो मौत से आगाह था
फिर भी
दर्दनाक मौत को गले लगाया
ऐसे किसी मसीह को
सलाम करता हूँ मै
जिसकी नूर
सबके दिलों में है
सदियों से.

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