बाँसुरी की धुन बेसुरी हो गयी है
क्यूँ गयी तुम
सात जनम कहती थी
इक जनम के पहर में खो गयी क्यूँ
गले की आवाज सूख गयी है
कोई हँसे या रोये
कोई फर्क नहीं
ख़ामोशी जहन में छा गयी क्यूँ
आँखों में वीरानगी आ गयी है
खुली हैं या बन्द
ध्यान नहीं रहता
रेत की बिसात कायम हो गयी क्यूँ.
_______________
No comments:
Post a Comment