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नदी तीर पर कुटी नहीं
दूर रहा मै प्यासा हूँ
बिन पानी प्यास बुझेगी
खुद को देता दिलासा हूँ
तू यहाँ की विदुषी,मै भग्गा तहरीर वाला हूँI
दूर हूँ तुझसे मगर , तेरा चाहने वाला हूँII
करता हूँ प्यार अरसे से
तुम्हे मै बेगाना रख
सहता हूँ ग़मों को यूँ
खुद को परवाना रख
मूक दर्शक हूँ,जुबाँ पे लगाया ताला हूँI
दूर हूँ तुझसे मगर ,तेरा चाहने वाला हूँII
हाथों पे कुछ लकीरें हैं
उनमे मेरे जज्बात नहीं
चाहूं जिसे लाख मै
वो होता मेरे साथ नहीं
तू चाँद की संकाश,मै अँधियारा काला हूँI
दूर हूँ तुझसे मगर , तेरा चाहने वाला हूँII
नदी तीर पर कुटी नहीं
दूर रहा मै प्यासा हूँ
बिन पानी प्यास बुझेगी
खुद को देता दिलासा हूँ
तू यहाँ की विदुषी,मै भग्गा तहरीर वाला हूँI
दूर हूँ तुझसे मगर , तेरा चाहने वाला हूँII
करता हूँ प्यार अरसे से
तुम्हे मै बेगाना रख
सहता हूँ ग़मों को यूँ
खुद को परवाना रख
मूक दर्शक हूँ,जुबाँ पे लगाया ताला हूँI
दूर हूँ तुझसे मगर ,तेरा चाहने वाला हूँII
हाथों पे कुछ लकीरें हैं
उनमे मेरे जज्बात नहीं
चाहूं जिसे लाख मै
वो होता मेरे साथ नहीं
तू चाँद की संकाश,मै अँधियारा काला हूँI
दूर हूँ तुझसे मगर , तेरा चाहने वाला हूँII
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bahut achha hai.
ReplyDeletenice poem
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